मां ![]() |
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जन्म दिया तुमने मुझको और इस दुनिया में लाईं तुम,
कष्ट सहे जाने कितने लेकिन हर क्षण मुस्काईं तुम।
मेरी ख़ातिर पीड़ाओं से समझौता कर गयीं सदा,
पर मस्तक पर चिन्ता की रेखाएँ कभी न लाईं तुम।
न ओस-धूप न छूने पाई,
दे दी आँचल की परछाई।
माँ तेरे इन संघर्षों का मैं कैसे गुणगान करूँ !
नहीं एक दिन छोटा सा, मैं सदियाँ तेरे नाम करूँ।
पैसे कम थे, कष्ट अधिक थे, जीवन में कठिनाई थी,
लेकिन
मेरी गलती पर मुझे डाँट जब छुप छुप करके रोतीं तुम,
हाँ,
कठिन समय को अपने संघर्षों के बल पर जीतीं तुम।
कठिन समय को अपने संघर्षों के बल पर जीतीं तुम।
खुद भूखी रहकर हमें खिलाया
खुद रात जागकर हमें सुलाया
माँ तेरे इन बलिदानों का मैं कैसे व्याख्यान करूँ?
नहीं एक दिन छोटा सा, मैं सदियाँ तेरे नाम करूँ।
© तल्हा मन्नान
छात्र, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
बहुत ही सीधी थी वो लड़की
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बहुत ही सीधी थी वो लड़की
जब कुछ भी बोलती ना थी वो,
सबकी सुनकर मन मे रखतीं
अपनी बातें दिल मे रखतीं,
दिल भी कितना करें स्टोर
कभी-कभी आँखें भी करती,
क्या हुआ उस एक दिन जब
उसने सबको सुना दिया,
सही और गलत हैं क्या
उसने सबको बता दिया,
कब-तक सहन करतीं वो सब कुछ
कभी तो बाहर आना ही था,
सीधी से कब बुरी बनीं वो
देखा उसने उसी पल वो,
वक़्त की लाठी कितनी प्यारीं
गज़ब हैं उसकी महिमा निराली,
बहुत ही सीधी थी वो लड़की
जब कुछ भी बोलती ना थी वो।
विदुषी मिश्रा
Waaah...for whom?
ReplyDeleteFor herself😂😂
DeleteOr may be for anyone😜
Only she can tell this ..😊
DeleteOk ma'am 🤐🤐
ReplyDeleteGood job vidushi
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